Monday, April 11, 2011

हम एक दुनिया छोड़ आए हैं

मुजाहिर है मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं हमारे पास जितना था हम उतना छोड़ आए हैं... कहानी का हिस्सा आजतक सबसे छुपाया है कि हम मिट्टी के खातिर अपना सोना छोड़ आए है... नई दुनिया बसा लेने की एक कमजोर सी चाहत में हम मोकामा की दहलीजो को सुना छोड़ आए है... सभी त्योहार मिल-जुल कर मनाते थे जब वहाँ थे दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए है... यकीन आता नहीं लगता है जैसे कच्ची नींद में शायद, हम अपना गाँव घर मुहल्ला छोड़ आए है... जो एक पतला रास्ता फाटक से गाछी जाता था, वहीं हसरत के ख्वाबों में भटकना छोड़ आए है.... हमारे घर आने कि दुआ करता है वो हम अपनी छत पे जो चिड़ियाओं का छ्त्ता छोड़ आए है, हमे सूरज कि किरणें इसलिए तकलीफ देती है, क्योकि हम मोकामा की धूप और गंगा का किनारा छोड़ आए है.....

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