Saturday, August 8, 2009

एक चंद्रशेखर और भी थे




वो लड़ते रहे अंग्रेजों से और जब आखिरी गोली बची तो उसे चूमकर अपने आप को मार लिया । जी हाँ ये कहानी चंद्रशेखर आजाद की लगती है , पर एक और आज़ादी का दीवाना था जिनसे आखिरी गोली से अपने आप को उडा लिया ।
१० दिसम्बर १८८८ को बिहारी ग्राम जिला बोगरा (अब बांग्लादेश ) में जन्मे प्रफुल्ला चंद्र चाकी को बचपन से ही अपनी मात्रभूमि से लगाव था । जब वो मात्र २० वर्ष के थे तब ही उन्होंने अंग्रेजो से लोहा लेना शुरू कर दिया था ।
अपने छात्र जीवन से ही चाकी ने चाकी ने अंग्रेजों से बगावत शुरू कर दिया , अपने युवा साथी खुदीराम बोस के साथ मिलकर उन्होंने किंग्स्फोर्ड (जो की कलकत्ता के मजिस्ट्रेट थे) को मारने का विचार किया । अप्रैल ३० १९०८ जब किंग्स्फोर्ड एक बग्ग्घी में जा रहा था तो खुदीराम बोस और प्रफुल्ला चाकी ने उसपर बम से हमला कर दिया , पर दुर्भाग्य से किंग्स्फोर्ड उस बग्ग्घी में सवार नही था और वो वच गया । जब प्रफुल्ला और खुदीराम को ये बात पता चली की किंग्स्फोर्ड बच गया और उसकी जगह गलती से दो महिलाएं मारी गई तो वो दोनों थोरे से निराश हुए वो दोनों ने अलग अलग भागने का विचार किया और भाग गए । खुदीराम बोस तो मुज्जफर पुर में पकरे गए पर प्रफुल्ला चाकी जब रेलगारी से भाग रहे थे तो समस्तीपुर में एक पुलिस वाले को उनपर शक हो गया वो उसने इसकी सूचनाआगे दे दी , शिनाक्त शिनाक्त हुई जब इसका अहसाह हुआ तो वो मोकामा रेलवे स्टेशन पर उतर गए पर पुलिस ने पुरे मोकामा स्टेशन को घेर लिया था दोनों और से गोलियां चली पर जब आखिरी गोली बची तो प्रपुल्ला चाकी ने उसे चूमकर ख़ुद को मार लिया और सहीद हो गए , पुलिस ने उनके शव को अपने कब्जे लेकर उनका सर काटकर कोलकत्ता भेज दिया ,वहां पर प्रफुल्ला चाकी के रूप में उनकी शिनाख्त हुई ।
११ अगस्त को खुदीराम बोस को फांसी दी गई ओर ये दिन बलिदान दिवस के रूप में याद किया जाता है ।
दोनों शहीदों को मेरा सत सत नमन :---

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