Thursday, August 6, 2009

मोकामा की उदास काली रात

सोने से तुलने लगे दो कौरी के लोग ।
मूर्खो को सम्मान दे कैसे कैसे योग।
जिस मोकामा को लोग बिहार का गौरव कहते थकते नही थे आज १०-२० साल से हीन नजरों से देखते है।
कारन भी हम मोकामा के लोग ही है । मोकामा का युवा आज गुमराह होता जा रहा है ।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है :----
पंछी को जब नही मिला किसी पेड का छोर ।
खाली पिंजरा देख कर बढ़ा उसी की ओर ।
मोकामा का युवा वर्ग आज ग़लत हाथो में चला गया है । गंदे राजनीतिज्ञ लोग उसका ग़लत इस्तेमाल कर पुरे मोकामा को बर्बाद करने पैर तुले है । यंहा की राजनीती इतनी गन्दी हो गई है की अंगूठा छाप आदमी भी विधायक ओर सांसद बन जाते है । जबकि पड़े लिखे लोग १००० रूपये की नौकरी के लिए भी तरस जाते है । यंहा के किसी विधायक ,किसी सांसद ने कभी यह प्रशन नही उठाया की मोकामा में कोई नया स्कूल , नया कोलेज ,नया हॉस्पिटल ,नया डाक घर ,कोई नई सरकारी ऑफिस ,कोई नया उद्योग कैसे लगाया जाय ओर तो ओर किसी ने आज तक ये उपाय नही किया की यंहा के पुराने मृतप्राय कॉलेज ,स्कूल या हॉस्पिटल को कैसे पुनः जीवित किया जाए । यंहा की ७० % आबादी खेती पर निर्भर करती पर आज तक किसी ने कभी सुध नही ली । मोकामा ताल जो की आपने दलहन उत्पादन के लिए पुरे भारत में मशहूर है पर किस मंत्री ने कभी कोई खबर नही ली, यंहा की खेती भगवान् भरोसे है ,यंहा के किसान घुट घुट कर मरने को मजबूर है । जब चुनाव आता है तो सब नेता अपने को सबसे बड़ा हितेषी समझने लगते है । ओर सच कहूं तो हम हम आम इन्सान ही इस समस्या की जड़ है हम आज भी जात पात ,भाई बंधू ,धर्म ,भाषा ,डर भय ,लालच ,मोह से जुड़कर उस बन्दे को आपना वोट दे देते है जिन्हें कुछ ज्ञान नही ,जरा सोचे जो कभी ख़ुद स्कूल नही गए ,कभी कॉलेज नही गए , सरकारी हॉस्पिटल नही गए वो भला कैसे किसी की मजबूरी को समझ सकते है ।
जिन्हें बंदूकों का सौख हो पैसे का ललच हो वो क्या भला करेंगे वो क्या आपके बच्चे के भविष्य के बारे में सोअचेंगे जिन्हें समाज आपनी ईज्जत सौप रहा है क्या वो सचमुच इस के लायक है
जरा सोचे ओर उढ़कर एक नए मोकामा के लिए प्रयास करे । करने से क्या नही होता हम फिर से वो गौरव पा लेंगे हम फिर से एक नया मोकामा बना लेंगे ।
जरा सोचे,हम क्या कर सकते है कुछ अपने प्यारे मोकामा के लिए .....
...........एक उम्मीद के साथ आपको यही छोड़ रहा हूँ...............

जय हिंद ,जय भारत

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