Sunday, April 17, 2011

मोकामा :- एक शहर नहीं , कोई गाउँ नहीं एक एह्साह है

मोकामा :- एक शहर  नहीं , कोई गाउँ नहीं एक एह्साह है . जिसमे लोग नहीं बसते बल्कि ये हमारे सांसों में बसता है , पिछले ३ दिनों से खामोश था . कुछ लिखा नहीं था . पर आज एक अनोखी जानकारी लाया हूँ . मोकामा अपने आप में एक अनोखा रेलवे junction है . (मोकामा + औंटा + हथिदह + रामपुर डुमरा ). ४ लगातार रेलवे junction जन्हा तक मैंने सर्च किया पुरे भारत में नहीं है. जी हाँ ४ लगातार रेलवे junction  मोकामा junction , औंटाjunction, हथिदह  junction , रामपुर डुमरा junction .मोकामा से पूरब की और जाने पर ये ४ लगातार रेलवे junction . अपने आप में अनोखा है .जैसा की पहले भी बता चूका हूँ की हथिदह junction   भारत का एकमात्र  ऐसा satation  है  जन्हा ट्रेन ऊपर और निचे दोनों जगह से गुजरती है 

Thursday, April 14, 2011

राजेंद्र पूल

राजेंद्र पूल :-मोकामा का राजेंन्द्र पुल एकमात्र ऐसा पुल है जो पुरे उत्तर बिहार को जोड़ता है । मोकामा का राजेंद्र पुल भारत का सबसे मजबूत लोहे का पुल है , इस पुल का नीचे का भाग रेलगाडी के लिए ओर ऊपर का मोटर गाड़ी के लिए है। यह एक सबसे पुराना रेल और सड़क पुल  है

लगभग ३ किलोमीटर लंबा पुल है । ये पुल मोकामा के हथिदह को ओर बेगुसराय के सिमरारिया की जोरता है।

गंगा की पवन धाराओं को इस पुल से देखना सचमुच लाजबाब होता है । इस पुल की मजबूती ओर सुन्दरता का क्या कहना , लोग कहते इस पुल को बनाने में ३ -४ साल का वक्त लगा था । लगभग १०,००० हजार लोग इसमे कम करते थे ।

मोकामा का हथिदह रेलवे satation

मोकामा का हथिदह रेलवे  satation भारत का एकमात्र  ऐसा satation  था जन्हा ट्रेन ऊपर और निचे दोनों जगह से गुजरती थी . अब कोंकण रेलवे मैं भी १-२ जगह ऐसा है .फिर भी पूरे भारत मैं ये अनोखा satation  है . ये अनोखा नज़ारा देखने आपको कोंकण ही जाना पड़ेगा . क्यूंकि कहते है न घर की मुर्गी दल बराबर .अगर नहीं तो जब मोकामा जाएँ तो ये अपने आँखों से देखे . जरा नजदीक से फोटो लें .

Monday, April 11, 2011

हम एक दुनिया छोड़ आए हैं

मुजाहिर है मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं हमारे पास जितना था हम उतना छोड़ आए हैं... कहानी का हिस्सा आजतक सबसे छुपाया है कि हम मिट्टी के खातिर अपना सोना छोड़ आए है... नई दुनिया बसा लेने की एक कमजोर सी चाहत में हम मोकामा की दहलीजो को सुना छोड़ आए है... सभी त्योहार मिल-जुल कर मनाते थे जब वहाँ थे दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए है... यकीन आता नहीं लगता है जैसे कच्ची नींद में शायद, हम अपना गाँव घर मुहल्ला छोड़ आए है... जो एक पतला रास्ता फाटक से गाछी जाता था, वहीं हसरत के ख्वाबों में भटकना छोड़ आए है.... हमारे घर आने कि दुआ करता है वो हम अपनी छत पे जो चिड़ियाओं का छ्त्ता छोड़ आए है, हमे सूरज कि किरणें इसलिए तकलीफ देती है, क्योकि हम मोकामा की धूप और गंगा का किनारा छोड़ आए है.....

Wednesday, April 6, 2011

होंसलौं से उड़ान होती है

मंजिल उन्ही को मिलती है
जिनके सपनो मैं जान होती है.
पंखों से कुछ नहीं होता 
होंसलौं से उड़ान होती है

क्योँ दुखी होता है ए दोस्त

क्योँ दुखी होता है ए दोस्त !
जरा यह  तो सोच 
जब वे दिन ही नहीं रहे
 तो ए दिन भी नहीं रहेंगे .
 
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