Wednesday, August 19, 2009
उम्मीद
Tuesday, August 11, 2009
बाटा नगर (मोकामा)
भारत वैगन एण्ड इंजिनियरिंग कम्पनी ( मोकामा )
भारत वैगन एण्ड इंजिनियरिंग कम्पनी (बी.डब्लू.ई.एल) आई.एस.ओ.-9001:2000 प्रमाणित एक केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। यह भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत, भारी उद्योग विभाग में 13.08.2008 तक था। 13.08.2008 के अपरान्ह से इस कम्पनी का प्रशासनिक नियंत्रण रेल मंत्रालय को स्थानान्तरित कर दिया गया है।दिसम्बर 1978 में दो निजी क्षेत्र की रूग्न वैगन विनिर्माता कम्पनियों मेसर्स आर्थर बटलर कम्पनी लिमिटेड, मुजफ्फरपुर एवं मेसर्स ब्रिटेनियॉ इंजिनियरिंग कम्पनी लिमिटेड (वैगन प्रभाग) मोकामा का अधिग्रहण कर भारत वैगन को निगमित किया गया है। एल.पी.जी. सिलिण्डर के निर्माण के लिए इंडस्ट्रियल स्टेट बेला, मुजफ्फरपुर को वर्ष 1983-84 में कम्पनी की तीसरी विनिर्माण इकाई के रूप में शामिल किया गया है। वर्ष 1986 में भारी उद्योग मंत्रालय के अधीन भारत भारी उद्योग निगम की समानुषंगी इकाई के रूप में कम्पनी को शामिल किया गया।मुजफ्फरपुर एवं मोकामा की दोनों इकाईयाँ पारंपरिक रूप से वैगन विनिर्माण कार्य से जुड़ा कारखाना है। अभिविन्यास, संयंत्र एवं यंत्र-समूह तथा स्थान, इस उत्पाद के लिए आदर्श रूप से उपयुक्त है। स्टील संरचना में आधे शतक से अधिक के प्रचुर अनुभव के साथ, भारत वैगन में बड़े स्टील संरचना कार्य के लिए जरूरी प्रायः सभी आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध हैं। 316 मि.टन क्षमता के ब्रेक प्रेस की उपलब्धता इस दिशा में एक दुर्लभ परिसम्पति है। सभी तीनों इकाईयाँ विद्युत आपूर्ति के मामले में डी.जी. सेटों की उपलब्धता के कारण आत्मनिर्भर हैं। कारखानों के प्रमुख रेलवे स्टेशनों के पास होने के कारण प्रचालन में सुविधा संभव हो सकी है।
राजेंद्र पुल मोकामा
Saturday, August 8, 2009
एक चंद्रशेखर और भी थे
अपने छात्र जीवन से ही चाकी ने चाकी ने अंग्रेजों से बगावत शुरू कर दिया , अपने युवा साथी खुदीराम बोस के साथ मिलकर उन्होंने किंग्स्फोर्ड (जो की कलकत्ता के मजिस्ट्रेट थे) को मारने का विचार किया । अप्रैल ३० १९०८ जब किंग्स्फोर्ड एक बग्ग्घी में जा रहा था तो खुदीराम बोस और प्रफुल्ला चाकी ने उसपर बम से हमला कर दिया , पर दुर्भाग्य से किंग्स्फोर्ड उस बग्ग्घी में सवार नही था और वो वच गया । जब प्रफुल्ला और खुदीराम को ये बात पता चली की किंग्स्फोर्ड बच गया और उसकी जगह गलती से दो महिलाएं मारी गई तो वो दोनों थोरे से निराश हुए वो दोनों ने अलग अलग भागने का विचार किया और भाग गए । खुदीराम बोस तो मुज्जफर पुर में पकरे गए पर प्रफुल्ला चाकी जब रेलगारी से भाग रहे थे तो समस्तीपुर में एक पुलिस वाले को उनपर शक हो गया वो उसने इसकी सूचनाआगे दे दी , शिनाक्त शिनाक्त हुई जब इसका अहसाह हुआ तो वो मोकामा रेलवे स्टेशन पर उतर गए पर पुलिस ने पुरे मोकामा स्टेशन को घेर लिया था दोनों और से गोलियां चली पर जब आखिरी गोली बची तो प्रपुल्ला चाकी ने उसे चूमकर ख़ुद को मार लिया और सहीद हो गए , पुलिस ने उनके शव को अपने कब्जे लेकर उनका सर काटकर कोलकत्ता भेज दिया ,वहां पर प्रफुल्ला चाकी के रूप में उनकी शिनाख्त हुई ।
शील भद्र याजी
Friday, August 7, 2009
प्रफुल्ल चंद्र चाकी
कबाड़ से कलाकारी, फिर भी भुखमरी
हम कब सुधरेंगे
बाबा परशुराम
Thursday, August 6, 2009
मोकामा की उदास काली रात
मूर्खो को सम्मान दे कैसे कैसे योग।
जिस मोकामा को लोग बिहार का गौरव कहते थकते नही थे आज १०-२० साल से हीन नजरों से देखते है।
कारन भी हम मोकामा के लोग ही है । मोकामा का युवा आज गुमराह होता जा रहा है ।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है :----
पंछी को जब नही मिला किसी पेड का छोर ।
खाली पिंजरा देख कर बढ़ा उसी की ओर ।
मोकामा का युवा वर्ग आज ग़लत हाथो में चला गया है । गंदे राजनीतिज्ञ लोग उसका ग़लत इस्तेमाल कर पुरे मोकामा को बर्बाद करने पैर तुले है । यंहा की राजनीती इतनी गन्दी हो गई है की अंगूठा छाप आदमी भी विधायक ओर सांसद बन जाते है । जबकि पड़े लिखे लोग १००० रूपये की नौकरी के लिए भी तरस जाते है । यंहा के किसी विधायक ,किसी सांसद ने कभी यह प्रशन नही उठाया की मोकामा में कोई नया स्कूल , नया कोलेज ,नया हॉस्पिटल ,नया डाक घर ,कोई नई सरकारी ऑफिस ,कोई नया उद्योग कैसे लगाया जाय ओर तो ओर किसी ने आज तक ये उपाय नही किया की यंहा के पुराने मृतप्राय कॉलेज ,स्कूल या हॉस्पिटल को कैसे पुनः जीवित किया जाए । यंहा की ७० % आबादी खेती पर निर्भर करती पर आज तक किसी ने कभी सुध नही ली । मोकामा ताल जो की आपने दलहन उत्पादन के लिए पुरे भारत में मशहूर है पर किस मंत्री ने कभी कोई खबर नही ली, यंहा की खेती भगवान् भरोसे है ,यंहा के किसान घुट घुट कर मरने को मजबूर है । जब चुनाव आता है तो सब नेता अपने को सबसे बड़ा हितेषी समझने लगते है । ओर सच कहूं तो हम हम आम इन्सान ही इस समस्या की जड़ है हम आज भी जात पात ,भाई बंधू ,धर्म ,भाषा ,डर भय ,लालच ,मोह से जुड़कर उस बन्दे को आपना वोट दे देते है जिन्हें कुछ ज्ञान नही ,जरा सोचे जो कभी ख़ुद स्कूल नही गए ,कभी कॉलेज नही गए , सरकारी हॉस्पिटल नही गए वो भला कैसे किसी की मजबूरी को समझ सकते है ।
जिन्हें बंदूकों का सौख हो पैसे का ललच हो वो क्या भला करेंगे वो क्या आपके बच्चे के भविष्य के बारे में सोअचेंगे जिन्हें समाज आपनी ईज्जत सौप रहा है क्या वो सचमुच इस के लायक है
जरा सोचे ओर उढ़कर एक नए मोकामा के लिए प्रयास करे । करने से क्या नही होता हम फिर से वो गौरव पा लेंगे हम फिर से एक नया मोकामा बना लेंगे ।
जरा सोचे,हम क्या कर सकते है कुछ अपने प्यारे मोकामा के लिए .....
Anand Shankar, (mokama)
कौन जाने (रमेश नीलकमल)
कौन जाने
जल रहे हों चाँदनी के पाँव
घाटियाँ सुकुमार उनको डँस न जाए आग
जग उठें पगडंडियाँ भी, उचरता है काग
हैं विडालों ने लगाए घात
कौन जाने
सन न जाए लहू से हर ठाँव
पर्वतों की कोख से नदियाँ निकल बल खाँय
पेड़-पौधों से कहो तनकर खड़े हो जाँय
सजग होकर रहें पल्लव-पात
कौन जाने
ज़हर फैले अस्मिता की छाँव
नागफ़नियों ने उगाए द्वंद्व हर घर-द्वार
मसनदी बातें न होती हैं कभी उपचार
पाँव उलटे चल रहे जज़्बात
कौन जाने
कब मिलेगा स्वप्न-सा हर गाँव
रमेश नीलकमल( लाल मोकामा के )
शिक्षा - कोलकाता में बी।ए. तक। फिर पटना से बी.एल. एवं प्रयाग से साहित्य-विशारद।सेवानिवृत्त 'कारखाना लेखा अधिकारी' पद से।
सम्मान - विद्यावाचस्पति, विद्यासागर तथा भारतभाषाभूषण।
प्रकाशित रचनाएँ - 10 काव्य, 4 कहानी, 5 समीक्षा, 2 रम्य-रचना, 3 शोध-लघुशोध, 1 भोजपुरी-विविधा तथा1 बाल-साहित्य, कुल 26 पुस्तकें प्रकाशित। तथा कुल 10 पुस्तकें संपादित।
सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन तथा 'शब्द-कारखाना' एवं 'वैश्यवसुधा' त्रैमासिकी का संपादन।