Wednesday, August 19, 2009

उम्मीद

"मिला दे खाक में हस्ती
अगर कुछ मर्तबा चाहे ।
की दाना खाक में मिलकर
गुले गुलजार होता है ॥"
किसी ने सच ही कहा है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है । अगर आपके अन्दर कुछ करने की चाह है तो कोई आपकी मंजिल को आपसे अलग नही कर सकता है । जिसने जब कोई कम दिल से ठान तो वो कर सकता है चाहे परिस्थिथि कितनी ही विपरीत क्यों न हो । अपने लक्ष्य को सामने रखकर जो लगन से उस काम में लग जाता है उसे मंजिल मिल ही जाती है।
एक शेर अर्ज है :---
"भटको न अपने पथ से
तो सब कुछ पा सकते हो प्यारे
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो
छु सकते हो नभ के तारे "
बड़े बड़े लोगों की जीवनी उठा कर देख लें सब ने अपने आरम्भिक जीवन में काफी दुःख झेले है पर उनलोगों ने डटकर उसका मुकाबला किया ओर उससे जीता तो ही आज उनका नाम है नही तो वो भी आज एक आम इन्सान की तरह ही होते ।

Tuesday, August 11, 2009

बाटा नगर (मोकामा)


भारत का दूसरा सबसे बड़ा बाटा नगर मोकामा में ही है । कलकत्ता में सबसे बड़ा बाटा नगर नगर है । मोकामा का बाटा नगर लगभग की मी में फैला हुआ है । यही से पुरे बिहार , ऊ प , झारखण्ड , दिल्ली तक जूते चप्लों की सप्लाई होती है। लगभग २००० लोग यंहा कम करते है ।

भारत वैगन एण्ड इंजिनियरिंग कम्पनी ( मोकामा )



भारत वैगन एण्ड इंजिनियरिंग कम्पनी (बी.डब्लू.ई.एल) आई.एस.ओ.-9001:2000 प्रमाणित एक केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। यह भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत, भारी उद्योग विभाग में 13.08.2008 तक था। 13.08.2008 के अपरान्ह से इस कम्पनी का प्रशासनिक नियंत्रण रेल मंत्रालय को स्थानान्तरित कर दिया गया है।दिसम्बर 1978 में दो निजी क्षेत्र की रूग्न वैगन विनिर्माता कम्पनियों मेसर्स आर्थर बटलर कम्पनी लिमिटेड, मुजफ्फरपुर एवं मेसर्स ब्रिटेनियॉ इंजिनियरिंग कम्पनी लिमिटेड (वैगन प्रभाग) मोकामा का अधिग्रहण कर भारत वैगन को निगमित किया गया है। एल.पी.जी. सिलिण्डर के निर्माण के लिए इंडस्ट्रियल स्टेट बेला, मुजफ्फरपुर को वर्ष 1983-84 में कम्पनी की तीसरी विनिर्माण इकाई के रूप में शामिल किया गया है। वर्ष 1986 में भारी उद्योग मंत्रालय के अधीन भारत भारी उद्योग निगम की समानुषंगी इकाई के रूप में कम्पनी को शामिल किया गया।मुजफ्फरपुर एवं मोकामा की दोनों इकाईयाँ पारंपरिक रूप से वैगन विनिर्माण कार्य से जुड़ा कारखाना है। अभिविन्यास, संयंत्र एवं यंत्र-समूह तथा स्थान, इस उत्पाद के लिए आदर्श रूप से उपयुक्त है। स्टील संरचना में आधे शतक से अधिक के प्रचुर अनुभव के साथ, भारत वैगन में बड़े स्टील संरचना कार्य के लिए जरूरी प्रायः सभी आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध हैं। 316 मि.टन क्षमता के ब्रेक प्रेस की उपलब्धता इस दिशा में एक दुर्लभ परिसम्पति है। सभी तीनों इकाईयाँ विद्युत आपूर्ति के मामले में डी.जी. सेटों की उपलब्धता के कारण आत्मनिर्भर हैं। कारखानों के प्रमुख रेलवे स्टेशनों के पास होने के कारण प्रचालन में सुविधा संभव हो सकी है।

राजेंद्र पुल मोकामा


मोकामा का राजेंन्द्र पुल एकमात्र ऐसा पुल है जो पुरे उत्तर बिहार को जोड़ता है । मोकामा का राजेंद्र पुल भारत का सबसे मजबूत लोहे का पुल है , इस पुल का नीचे का भाग रेलगाडी के लिए ओर ऊपर का मोटर गाड़ी के लिए है।

लगभग ३ किलोमीटर लंबा पुल है । ये पुल मोकामा के हथिदह को ओर बेगुसराय के सिमरारिया की जोरता है।

गंगा की पवन धाराओं को इस पुल से देखना सचमुच लाजबाब होता है । इस पुल की मजबूती ओर सुन्दरता का क्या कहना , लोग कहते इस पुल को बनाने में ३ -४ साल का वक्त लगा था । लगभग १०,००० हजार लोग इसमे कम करते थे ।

Saturday, August 8, 2009

एक चंद्रशेखर और भी थे




वो लड़ते रहे अंग्रेजों से और जब आखिरी गोली बची तो उसे चूमकर अपने आप को मार लिया । जी हाँ ये कहानी चंद्रशेखर आजाद की लगती है , पर एक और आज़ादी का दीवाना था जिनसे आखिरी गोली से अपने आप को उडा लिया ।
१० दिसम्बर १८८८ को बिहारी ग्राम जिला बोगरा (अब बांग्लादेश ) में जन्मे प्रफुल्ला चंद्र चाकी को बचपन से ही अपनी मात्रभूमि से लगाव था । जब वो मात्र २० वर्ष के थे तब ही उन्होंने अंग्रेजो से लोहा लेना शुरू कर दिया था ।
अपने छात्र जीवन से ही चाकी ने चाकी ने अंग्रेजों से बगावत शुरू कर दिया , अपने युवा साथी खुदीराम बोस के साथ मिलकर उन्होंने किंग्स्फोर्ड (जो की कलकत्ता के मजिस्ट्रेट थे) को मारने का विचार किया । अप्रैल ३० १९०८ जब किंग्स्फोर्ड एक बग्ग्घी में जा रहा था तो खुदीराम बोस और प्रफुल्ला चाकी ने उसपर बम से हमला कर दिया , पर दुर्भाग्य से किंग्स्फोर्ड उस बग्ग्घी में सवार नही था और वो वच गया । जब प्रफुल्ला और खुदीराम को ये बात पता चली की किंग्स्फोर्ड बच गया और उसकी जगह गलती से दो महिलाएं मारी गई तो वो दोनों थोरे से निराश हुए वो दोनों ने अलग अलग भागने का विचार किया और भाग गए । खुदीराम बोस तो मुज्जफर पुर में पकरे गए पर प्रफुल्ला चाकी जब रेलगारी से भाग रहे थे तो समस्तीपुर में एक पुलिस वाले को उनपर शक हो गया वो उसने इसकी सूचनाआगे दे दी , शिनाक्त शिनाक्त हुई जब इसका अहसाह हुआ तो वो मोकामा रेलवे स्टेशन पर उतर गए पर पुलिस ने पुरे मोकामा स्टेशन को घेर लिया था दोनों और से गोलियां चली पर जब आखिरी गोली बची तो प्रपुल्ला चाकी ने उसे चूमकर ख़ुद को मार लिया और सहीद हो गए , पुलिस ने उनके शव को अपने कब्जे लेकर उनका सर काटकर कोलकत्ता भेज दिया ,वहां पर प्रफुल्ला चाकी के रूप में उनकी शिनाख्त हुई ।
११ अगस्त को खुदीराम बोस को फांसी दी गई ओर ये दिन बलिदान दिवस के रूप में याद किया जाता है ।
दोनों शहीदों को मेरा सत सत नमन :---

शील भद्र याजी


वह वोलता तो बड़े बड़े की बोलती बंद हो जाती थी । आजादी के दीवानों में कुछ एक ही ऐसे लोग थे जिनको गाँधी जी ओर सुभाष चंद्र बोस दोनों का सानिध्य प्राप्त था । जब उनका दिल करता तो गाँधी जी से गाँधी वाद सीख लेते जब दिल में आता तो सुभाष के साथ मिलकर अंग्रेजो से लोहा लेने लगते । चाहे आहिंसा के पुजारी ,चाहे गरम दल के लोग दोनों ही दल के लोग याजी को अपना नेता मानते थे । याजी भी फक्कर मसीहा थे जब दिल में आया गरम दल में ,जब दिल में आया नरम दल में । मगर हर हाल में अंग्रेजो को बाहर भगाने के लिए तत्पर । अपनी पूरी जिन्दगी उन्होंने समाज सेवा में लगा दिया , जब तक वो जीवित रहे लड़ते रहे समाज सुधारमें लगे रहे , जीवन के आखरी दिनों में भी वो लड़ते रहे :- चाहे बात किसानो की हो , चाहे बात मजदूरों की हो , चाहे गरीबों के हक़ की बात हो , उन्होंने अपना पूरा जीवन देश पर न्योछावर कर दिया
देश के इस सच्चे सपूत को एक भीनी श्रधान्जली :-------------
महान नायक को सलाम :----- जय हिंद

Friday, August 7, 2009

प्रफुल्ल चंद्र चाकी

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही बांकी निशा होगा ॥
1906 में मेदनीपुर की पुरानी जेल में सरकार की ओर से एक प्रदर्शनी लगायी गयी थी। अंग्रेज सरकार भारतीयों के कल्याण के लिए जो कुछ कर रही थी, उसके बारे में इसमें प्रचारित किया जा रहा था। प्रदर्शनी में खुदीराम बोस ने पर्चा बांटने का काम किया। 'वंदेमातरम्' का पर्चा बांटते हुए वे गिरफ्तार हुए और सिपाही की नाक पर जोर से घूंसा मार कर भाग खड़े हुए। तब खुदीराम बोस जीवन के 17वें वसंत में थे। बंकिमचंद्र के 'आनंदमठ' के वे पाठक थे। यह समय उनके दृढ़ संकल्प का तो था ही, साथ ही यही वह समय था जब उन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष करने और जीवन की आहुति देने का संभवत: संकल्प लिया। यही कारण रहा कि वे मुजफ्फरपुर(बिहार) में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला बम विस्फोट कर स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के महानायक बने।खुदीराम की शहादत और मुजफ्फरपुर का साथ कुछ ऐसा है कि एक को छोड़ दूसरे को नहीं समझा जा सकता। छोटी सी उमर (18 साल) में क्रांति का ऐसा जुनून कि हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गये। बोस का जन्म 1889 में 3 दिसंबर को मेदनीपुर जिले में हुआ था। पिता त्रयलोक्य नाथ बोस थे। मां-पिता की मृत्यु के बाद बड़ी बहन अपरूपा देवी ने खुदीराम बोस का नाम मेदनीपुर के कालेजिएट स्कूल में लिखाया। यहीं वे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। 1905 के बंगाल विभाजन और 1907 में नया कानून बनाकर अंग्रेजों द्वारा लोगों को प्रताड़ित करते देख खुदीराम बोस ने हुकूमत से बदला लेने का मन बनाया। किंग्सफोर्ड ऐसे ही जज थे, जिन्होंने कई क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनायी थी। यही कारण रहा कि बंगाल से मुजफ्फरपुर किंग्सफोर्ड के तबादले के बावजूद खुदीराम बोस और चाकी ने बदला लेने का विचार नहीं त्यागा। 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की हत्या के लिए मुजफ्फरपुर में कंपनीबाग रोड स्थित क्लब के समीप बम फेंका। फोर्ड बच गये, चूंकि वे गाड़ी में थे ही नहीं, लेकिन इस घटना में दो महिलाओं की मौत हुई। इसी मामले में बोस को 11 अगस्त 1908 को फांसी हुई और चाकी ने मोकामा में खुद को गोली मार ली। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खुदीराम का यह बम विस्फोट सबसे पहला था।आज भी प्रतिवर्ष बलिदान दिवस 11 अगस्त (इस दिन खुदीराम बोस को फांसी दी गयी थी) को मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा की उस कोठरी में लोग नमन करने पहुंचते हैं, जहां उन्होंने यातनाओं का लंबा सफर काटा था। श्रद्धांजलि से पूर्व फांसी घर के समीप प्रार्थना सभा कर उनकी स्मृति को नमन किया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम के इस महानायक को शत-शत प्रणाम!

कबाड़ से कलाकारी, फिर भी भुखमरी

बिहार के मोकामा का रहने वाले अक्षय आजाद की अनोखी कला की यूं तो बड़े-बड़े लोगों ने प्रशंसा की है, लेकिन इसके जीवन में अब तक कोई ऐसा रहनुमा नहीं आया जो इसके लिए दो वक्त रोटी का जुगाड़ करवा दे।कबाड़ से अनोखी चीजें बनाने वाले अक्षय को बेकार की चीजों से तस्वीर बनाने में महारथ हासिल है। अब तक वे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष आदि कई लोगों की तस्वीरें विभिन्न वस्तुओं से बना चुके हैं।
अक्षय ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चावल से बनी तस्वीर भेंट की। मुख्यमंत्री ने उसे मदद देने की बात भी कही, परंतु अब तक उसे कुछ नहीं मिला।अक्षय ने बताया कि वर्ष 2007 में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को उसने चायपत्ती के दाने से बनी तस्वीर भेंट की थी। परंतु राष्ट्रपति द्वारा एक प्रशंसा पत्र से ज्यादा उसे कुछ प्राप्त नहीं हुआ। अक्षय बताता है कि उसने अब तक खजूर के फल से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, साबुदाने से पूर्व राज्यपाल आर। एस. गवई, धनिया के दाने से लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान की तस्वीरें बना चुका है। उन्होंने बताया कि उसने कागज के टुकड़े से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीर बनाई है, जिसे वह प्रधानमंत्री निवास जाकर भेंट करेगा।
अक्षय बड़े दुखी मन से कहते हैं कि उन्होंने अब तक जिनकी भी तस्वीरें बनाई हैं वे सभी गरीबों के उत्थान करने का दंभ अवश्य भरते हैं, परंतु मेरी बदहाली पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
सौजन्य :- जोश १८

हम कब सुधरेंगे

जब किसी ने अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की इसी तरह से उसकी जुबान बंद कर दी गई । मोकामा प्रखंड के मरांची थाना क्षेत्र के जलालपुर गांव निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक मणिमोहन प्रसाद सिंह की गुरुवार को लगभग साढ़े दस बजे दरभंगा से पटना जाने वाली कमला गंगा फास्ट पैसेंजर ट्रेन में गोली मारकर हत्या कर दी गयी।रेल डीएसपी राजेन्द्र सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद बताया कि रंगदारी के पुराने मामले में सेवानिवृत्त शिक्षक गवाह थे। रास्ते से हटाने के लिए जेल में बंद गुडडू सिंह के इशारे पर उसके साथियों ने चलती ट्रेन में उन्हें गोलियों से भून डाला। मोकामा अभिशप्त है अपने लोगो का लहू बहने के लिए । कब तक ये खुनी खेल चलता रहेगा ............ कोई कह नही सकता ....... चांदीके चाँद रुपयों खातिर हम खून बहने से भी नही डरते .... आज पुरे मोकामा को कुछ मुठी भर लोगो ने अपनी जागीर बना रखी है । ........... जरा सोचे जिसका कोई मारा जाता है पुरे परिवार पर क्या गुजरती है , उनके बच्चे अनाथ हो जाते , पत्नी विधवा हो जाती है,पुरी जिन्दगी तरप तरप कर गुजरती है । परिवार पर जो दुःख होता है वो दर्द कोई कैसे बयां कर सकता है ......
अब वक्त आ गया है हम सब जगे ओर अपने मोकामा को आतंक मुक्त बनने का हर संभंव प्रयास करे ।
भगवन सब को सद बुधि दें सब लोग आपस में प्यार करें । ..................................

बाबा परशुराम


मोकामा की पावन धरती पर बाबा परशुराम के चरण पड़े ओर मोकामा की धरती पवित्र हो गई । लोगो का मानना है की यही पर बाबा परशुराम ने छत्रियों का वध किया था और लोगो को भय मुक्त किया था । मोकामा के पूरब और पश्चिम में बाबा परशुराम का विशाल मन्दिर है । दोनों ही मन्दिर आपने आप में अधभुत है। यंहां जाकर मन को जो सुकून मिलता है उसको शब्दों में व्यान नही किया जा सकता । मोकामा के दोनों छोर पर बाबा परशुराम का मन्दिर होना यह दर्शाता है की लोगो की उनमे कितनी शर्धा है । दोनों मन्दिर मोकामा के दोनों छोर पर है मानो मोकामा की हर संकट को वही से हटा देंगे । लोगो की बाबा परशुराम में शर्धा होने के बाबजूद भी मदिर की स्थिथि दयनिए होती जा रही है । युवा पीढी उनसे दूर होता जा रहा है । मैं बाबा परशुराम से पार्थना करता हूँ की बाबा मोकामा के लोगो को सदबुधि दे ।

जय बाबा परशुराम ..................................

Thursday, August 6, 2009

मोकामा की उदास काली रात

सोने से तुलने लगे दो कौरी के लोग ।
मूर्खो को सम्मान दे कैसे कैसे योग।
जिस मोकामा को लोग बिहार का गौरव कहते थकते नही थे आज १०-२० साल से हीन नजरों से देखते है।
कारन भी हम मोकामा के लोग ही है । मोकामा का युवा आज गुमराह होता जा रहा है ।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है :----
पंछी को जब नही मिला किसी पेड का छोर ।
खाली पिंजरा देख कर बढ़ा उसी की ओर ।
मोकामा का युवा वर्ग आज ग़लत हाथो में चला गया है । गंदे राजनीतिज्ञ लोग उसका ग़लत इस्तेमाल कर पुरे मोकामा को बर्बाद करने पैर तुले है । यंहा की राजनीती इतनी गन्दी हो गई है की अंगूठा छाप आदमी भी विधायक ओर सांसद बन जाते है । जबकि पड़े लिखे लोग १००० रूपये की नौकरी के लिए भी तरस जाते है । यंहा के किसी विधायक ,किसी सांसद ने कभी यह प्रशन नही उठाया की मोकामा में कोई नया स्कूल , नया कोलेज ,नया हॉस्पिटल ,नया डाक घर ,कोई नई सरकारी ऑफिस ,कोई नया उद्योग कैसे लगाया जाय ओर तो ओर किसी ने आज तक ये उपाय नही किया की यंहा के पुराने मृतप्राय कॉलेज ,स्कूल या हॉस्पिटल को कैसे पुनः जीवित किया जाए । यंहा की ७० % आबादी खेती पर निर्भर करती पर आज तक किसी ने कभी सुध नही ली । मोकामा ताल जो की आपने दलहन उत्पादन के लिए पुरे भारत में मशहूर है पर किस मंत्री ने कभी कोई खबर नही ली, यंहा की खेती भगवान् भरोसे है ,यंहा के किसान घुट घुट कर मरने को मजबूर है । जब चुनाव आता है तो सब नेता अपने को सबसे बड़ा हितेषी समझने लगते है । ओर सच कहूं तो हम हम आम इन्सान ही इस समस्या की जड़ है हम आज भी जात पात ,भाई बंधू ,धर्म ,भाषा ,डर भय ,लालच ,मोह से जुड़कर उस बन्दे को आपना वोट दे देते है जिन्हें कुछ ज्ञान नही ,जरा सोचे जो कभी ख़ुद स्कूल नही गए ,कभी कॉलेज नही गए , सरकारी हॉस्पिटल नही गए वो भला कैसे किसी की मजबूरी को समझ सकते है ।
जिन्हें बंदूकों का सौख हो पैसे का ललच हो वो क्या भला करेंगे वो क्या आपके बच्चे के भविष्य के बारे में सोअचेंगे जिन्हें समाज आपनी ईज्जत सौप रहा है क्या वो सचमुच इस के लायक है
जरा सोचे ओर उढ़कर एक नए मोकामा के लिए प्रयास करे । करने से क्या नही होता हम फिर से वो गौरव पा लेंगे हम फिर से एक नया मोकामा बना लेंगे ।
जरा सोचे,हम क्या कर सकते है कुछ अपने प्यारे मोकामा के लिए .....
...........एक उम्मीद के साथ आपको यही छोड़ रहा हूँ...............

जय हिंद ,जय भारत

Anand Shankar, (mokama)



A God-fearing man, Shankar is a Lord Krishna devotee. Sporting a long Vaishnavite-style `tika' on his forehead, Shankar told media persons, "Now there would be no talk. Actions will speak instead." Asked how would he deal with the law and order situation, he said, "With full capacity but within the parameters of law." When reminded of his advice to police personnel to make do with salary and asked how would he monitor the corrupt, the new DGP said he has called a meeting of officers at 9 am on Saturday (a holiday) to discuss the matter. Incidentally, Shankar's predecessor D N Gautam is also a Lord Krishna devotee.

कौन जाने (रमेश नीलकमल)

धूप-सी उजली हुई है रात
कौन जाने
जल रहे हों चाँदनी के पाँव
घाटियाँ सुकुमार उनको डँस न जाए आग
जग उठें पगडंडियाँ भी, उचरता है काग
हैं विडालों ने लगाए घात
कौन जाने
सन न जाए लहू से हर ठाँव
पर्वतों की कोख से नदियाँ निकल बल खाँय
पेड़-पौधों से कहो तनकर खड़े हो जाँय
सजग होकर रहें पल्लव-पात
कौन जाने
ज़हर फैले अस्मिता की छाँव
नागफ़नियों ने उगाए द्वंद्व हर घर-द्वार
मसनदी बातें न होती हैं कभी उपचार
पाँव उलटे चल रहे जज़्बात
कौन जाने
कब मिलेगा स्वप्न-सा हर गाँव

रमेश नीलकमल( लाल मोकामा के )

जन्म - 21 नवम्बर 1937 बिहार, पटना, मोकामा के 'रामपुर डुमरा' गाँव में।
शिक्षा - कोलकाता में बी।ए. तक। फिर पटना से बी.एल. एवं प्रयाग से साहित्य-विशारद।सेवानिवृत्त 'कारखाना लेखा अधिकारी' पद से।
सम्मान - विद्यावाचस्पति, विद्यासागर तथा भारतभाषाभूषण।
प्रकाशित रचनाएँ - 10 काव्य, 4 कहानी, 5 समीक्षा, 2 रम्य-रचना, 3 शोध-लघुशोध, 1 भोजपुरी-विविधा तथा1 बाल-साहित्य, कुल 26 पुस्तकें प्रकाशित। तथा कुल 10 पुस्तकें संपादित।
सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन तथा 'शब्द-कारखाना' एवं 'वैश्यवसुधा' त्रैमासिकी का संपादन।

पहचान को तरसीं 'शहीद महिलाएँ'

मोकामा के करीब 86 वर्षीय सुधीर महतो ने अपने इलाके की शहीद महिला के बारे में कहानी बताई, लेकिन उम्रदराज होने के चलते और उस समय फरार हो जाने के चलते वह नाम नहीं बता पाए। जब महिला शहीदों का रिकॉर्ड खंगाला गया तो पता चला कि गोली का शिकार हुई पटना के ही मोकामा प्रखंड की एक अज्ञात महिला अपने दुधमुँहे बच्चे के साथ अंग्रजों के खिलाफ लड़ाई करती हुई शहीद हुई थी, लेकिन आज तक न तो उसके और न ही उसके बच्चे के नाम का पता चल सका, क्योंकि उसके बारे में बताने वाला शायद कोई नहीं था। सभी लोग या तो गाँव छोड़कर भाग गए या उनमें से कुछ मारे गए।

मोकामा वासियों को स्वंतन्त्रता दिवस की ढेर सारी बधाइयाँ


जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य-विधाता,
पंजाब-सिन्धु-गुजरात-मरठा-
द्राविधू-उत्कल-बन्ग
विन्ध्य-हिमाचल-यमुना-गन्गा
उच्छल-जलधि-तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशीष मांगे,
गाहे तव जय-गाथा
जन-गण-मन-मंगलदायक जय हे
भारत-भाग्य-विधता
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे

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