Friday, August 7, 2009

प्रफुल्ल चंद्र चाकी

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालों का यही बांकी निशा होगा ॥
1906 में मेदनीपुर की पुरानी जेल में सरकार की ओर से एक प्रदर्शनी लगायी गयी थी। अंग्रेज सरकार भारतीयों के कल्याण के लिए जो कुछ कर रही थी, उसके बारे में इसमें प्रचारित किया जा रहा था। प्रदर्शनी में खुदीराम बोस ने पर्चा बांटने का काम किया। 'वंदेमातरम्' का पर्चा बांटते हुए वे गिरफ्तार हुए और सिपाही की नाक पर जोर से घूंसा मार कर भाग खड़े हुए। तब खुदीराम बोस जीवन के 17वें वसंत में थे। बंकिमचंद्र के 'आनंदमठ' के वे पाठक थे। यह समय उनके दृढ़ संकल्प का तो था ही, साथ ही यही वह समय था जब उन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष करने और जीवन की आहुति देने का संभवत: संकल्प लिया। यही कारण रहा कि वे मुजफ्फरपुर(बिहार) में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला बम विस्फोट कर स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के महानायक बने।खुदीराम की शहादत और मुजफ्फरपुर का साथ कुछ ऐसा है कि एक को छोड़ दूसरे को नहीं समझा जा सकता। छोटी सी उमर (18 साल) में क्रांति का ऐसा जुनून कि हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गये। बोस का जन्म 1889 में 3 दिसंबर को मेदनीपुर जिले में हुआ था। पिता त्रयलोक्य नाथ बोस थे। मां-पिता की मृत्यु के बाद बड़ी बहन अपरूपा देवी ने खुदीराम बोस का नाम मेदनीपुर के कालेजिएट स्कूल में लिखाया। यहीं वे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। 1905 के बंगाल विभाजन और 1907 में नया कानून बनाकर अंग्रेजों द्वारा लोगों को प्रताड़ित करते देख खुदीराम बोस ने हुकूमत से बदला लेने का मन बनाया। किंग्सफोर्ड ऐसे ही जज थे, जिन्होंने कई क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनायी थी। यही कारण रहा कि बंगाल से मुजफ्फरपुर किंग्सफोर्ड के तबादले के बावजूद खुदीराम बोस और चाकी ने बदला लेने का विचार नहीं त्यागा। 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की हत्या के लिए मुजफ्फरपुर में कंपनीबाग रोड स्थित क्लब के समीप बम फेंका। फोर्ड बच गये, चूंकि वे गाड़ी में थे ही नहीं, लेकिन इस घटना में दो महिलाओं की मौत हुई। इसी मामले में बोस को 11 अगस्त 1908 को फांसी हुई और चाकी ने मोकामा में खुद को गोली मार ली। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खुदीराम का यह बम विस्फोट सबसे पहला था।आज भी प्रतिवर्ष बलिदान दिवस 11 अगस्त (इस दिन खुदीराम बोस को फांसी दी गयी थी) को मुजफ्फरपुर केंद्रीय कारा की उस कोठरी में लोग नमन करने पहुंचते हैं, जहां उन्होंने यातनाओं का लंबा सफर काटा था। श्रद्धांजलि से पूर्व फांसी घर के समीप प्रार्थना सभा कर उनकी स्मृति को नमन किया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम के इस महानायक को शत-शत प्रणाम!

8 comments:

  1. आपके सरोकार स्पष्ट हैं...
    शुभकामनाएं...

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  2. मुजफ्फरपुर की यह जानकारी नयी है ..!! अमर शहीदों को हमारा भी नमन..!!

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  3. saheedo ke har ada ke ham kayal hai aur ap uske bhi jis ne unke bare men itni khubsoorti se jankariyan uplabdh karaee.Apka lekh vastiwik roop se sarahaniye hai aur is jankari ke liye ham apke sukragujaar hai.Ultimately, Bahut Khoob!

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  4. aap kaa lakshya hi to bahut sari paqreshaniyon ki jad hai.

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  5. achi jankari se manav age ki aur chalta he jisse veha dusaro ko achi shiksha de skta heeeeeeeeee.............

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