मोकामा समूह आज कल शांत है ...कोई टॉपिक नहीं चल रहा ..चलिए हमलोग मोकामा के लाल को ढूंढे जिन्होंने मोकामा का नाम रौशन किया ...साथ साथ ही मोकामा कुछ महापुरुषों की भी कर्म भूमि रही है उनका भी चर्चा हो..चलिए कुछ एक नाम मैं अपनी जानकारी के हिसाब से जोड़ रहा हूँ .बाकि आप लोग सहयोग करें और इस कड़ी को आगे बढाएं.
१.श्री अटल बिहारी बाजपयी..जी हाँ सबसे पहला नाम मैंने अटल जी का लिया है .अटल बिहारी जी की जिन्दगी के बहुत नाजुक पल मोकामा मैं ही गुजरे है .लगभग ६-८ महीने का बनवास अटल जी ने मोकामा मैं ही काटा था. इमरजेंसी के पहले का ३-४ महिना बाजपयी जी ने मोकामा मैं ही गुजारा था .देखिये मैं उनकी बुराई नहीं कर रहा हूँ पर लोग बताते है की अटल जी को भांग(एक तरह का नशा ) की लत मोकामा मैं ही लगी थी .अटल जी स्व . राजो दा के घर पर दूध रोटी खाने के भी आदि हो गए थे .अटल जी बेकटेश प्रसाद सिंह उर्फ़ बिनो बाबु के परम मित्र है उनकी दिनचर्या के बारे मैं और भी रोचक जानकारी हासिल की जा सकती है मोकामा मैं जाकर ...
२.श्री मोहन दास करम चंद गाँधी - जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ प्यारे बापू महात्मा गाँधी जी की ..उन्होंने ने भी मोकामा में आज़ादी के आन्दोलन के समय अपना अमूल्य समय मोकामा में गुजारा था ..लोग बताते है कि जब वो मोकामा आये थे तो .चौकी पर चौकी डालकर पुरे ३० चौकी कि उचाई कि गयी थी तब जाके बापू ने मोकामा कि जनता को संबोधित किया था ..वो खुद ही कुआ से पानी खीचते थे और मर-मैदान करते थे .जब तक वो मोकामा में रहे उन्होंने अपना काम खुद ही किया ..
३.प्रफुल्ला चंद्र चाकी-आज़ादी का पहला चंद्रशेखर आज़ाद जिसने अंतिम गोली से खुद को उड़ा लिया .मगर अंग्रेजों कि अधीनता नहीं स्वीकारी .अपने छात्र जीवन से ही चाकी ने चाकी ने अंग्रेजों से बगावत शुरू कर दिया , अपने युवा साथी खुदीराम बोस के साथ मिलकर उन्होंने किंग्स्फोर्ड (जो की कलकत्ता के मजिस्ट्रेट थे) को मारने का विचार किया । अप्रैल ३० १९०८ जब किंग्स्फोर्ड एक बग्ग्घी में जा रहा था तो खुदीराम बोस और प्रफुल्ला चाकी ने उसपर बम से हमला कर दिया , पर दुर्भाग्य से किंग्स्फोर्ड उस बग्ग्घी में सवार नही था और वो वच गया । जब प्रफुल्ला और खुदीराम को ये बात पता चली की किंग्स्फोर्ड बच गया और उसकी जगह गलती से दो महिलाएं मारी गई तो वो दोनों थोरे से निराश हुए वो दोनों ने अलग अलग भागने का विचार किया और भाग गए । खुदीराम बोस तो मुज्जफर पुर में पकरे गए पर प्रफुल्ला चाकी जब रेलगारी से भाग रहे थे तो समस्तीपुर में एक पुलिस वाले को उनपर शक हो गया वो उसने इसकी सूचना आगे दे दी , जब इसका अहसाह हुआ तो वो मोकामा रेलवे स्टेशन पर उतर गए पर पुलिस ने पुरे मोकामा स्टेशन को घेर लिया था दोनों और से गोलियां चली पर जब आखिरी गोली बची तो प्रपुल्ला चाकी ने उसे चूमकर ख़ुद को मार लिया और शहीद हो गए , पुलिस ने उनके शव को अपने कब्जे लेकर उनका सर काटकर कोलकत्ता भेज दिया ,वहां पर प्रफुल्ला चाकी के रूप में उनकी शिनाख्त हुई ।
जारी है..............................
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